अधिवक्ता एक्ट संशोधन प्रस्ताव के विरोध में वकीलों ने की नारेबाजी
कोंच से वरिष्ठ पत्रकार पीड़ी रिछारिया की रिपोर्ट
कोंच। केंद्र सरकार के अधिवक्ता एक्ट संशोधन प्रस्ताव को अधिवक्ताओं के हकों का हनन बताते हुए अधिवक्ता खुलकर विरोध में उतरे हैं। मंगलवार को अधिवक्ता न्यायिक कार्य से विरत रहे और प्रस्ताव के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
अधिवक्ता एक्ट संशोधन प्रस्ताव के विरोध में बार काउंसिल ऑफ उप्र के आह्वान पर 21 फरवरी से बांह पर काली पट्टी बांधकर न्यायिक कार्य करते आ रहे अधिवक्ता 25 फरवरी को पूरी तरह से न्यायिक कार्य से विरत रहे। उक्त प्रस्ताव के विरोध में कोंच बार संघ अध्यक्ष रामशरण कुशवाहा की अगुवाई में तमाम अधिवक्ताओं ने मुंसिफ कोर्ट गेट एवं तहसील में नारेबाजी की। अधिवक्ताओं के विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन देते हुए दस्तावेज लेखक, स्टांप विक्रेता, टाइपिस्ट और मुंशियों ने भी कोई काम नहीं किया जिसके चलते मंगलवार को तहसील स्थित रजिस्ट्रार कार्यालय में कोई भी कार्य नहीं हो सका। मुकदमों की तारीखों पर आए तमाम वादकारी भी परेशान रहे। बार संघ अध्यक्ष का कहना है कि भारत सरकार के कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2005 अधिवक्ताओं को संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के प्रतिकूल है। अधिवक्ता हित को देखते हुए इसे शीघ्र ही वापस लिया जाए। इसके अलावा अधिवक्ता प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने, स्वास्थ बीमा योजना के तहत मिलने वाली न्यूनतम राशि 10 लाख रुपए प्रदान करने, अधिवक्ताओं के बैठने के लिए चैंबर और पार्किंग की समुचित व्यवस्था, अधिवक्ताओं के लिए लोकसभा एवं राज्यसभा में अधिकारित विधान परिषद की सीटें आरक्षित किए जाने की मांग शीघ्र ही पूरी की जाए। अन्यथा की स्थिति में बार काउंसिल ऑफ उप्र के आह्वान पर विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। इस दौरान हल्के सिंह बघेल, योगेंद्र अरूसिया, सोमदत्त पांडे, नरेंद्र तिवारी, माता प्रसाद अहिरवार, अमित श्रीवास्तव, अनंतपाल यादव, अमित रावत, शैलेंद्र पटेरिया, मनोज दूरवार, सतीश चौबे, कुलदीप सौनकिया, राजेंद्र मोहन, केदारी लाल पाठक, विनोद निरंजन, इंद्रजीत सिंह राठौर, नरेंद्र पुरोहित, ब्रजेंद्र वाजपेयी, शशांक श्रीवास्तव, अर्पित वाजपेयी, असित कुशवाहा, राम मिलन आदि रहे।
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