'उठो देव, उठो देव, गुड़ माड़े खाओ, कुंवारिन के व्याऔ कराओ..'

फोटो परिचय-देवोत्थान एकादशी पर पूजा करता एक परिवार 


कोंच से वरिष्ठ पत्रकार पीड़ी रिछारिया की रिपोर्ट
* देवोत्थान एकादशी की पूजा के साथ ही मांगलिक कार्यों का भी हुआ शुभारंभ 
कोंच। प्रबोधनी एकादशी जिसे देवोत्थानी एकादशी भी कहते हैं, का पर्व सनातन धर्मावलंबियों द्वारा परंपरागत रूप से श्रद्घाभाव के साथ मनाया गया। भगवान को ईंख की झोंपड़ी में बैठा कर उनकी पूजा अर्चना की गई। इसी के साथ वैवाहिक कार्यों के साथ अन्य मांगलिक कार्य भी प्रारंभ हो गए हैं। त्योहार के मद्देनजर गन्ने में आग लगी रही और जगह जगह लगी गन्ने की दुकानों पर मुंह मांगी कीमत वसूली गई।
चार महीने तक शयनावस्था में रहने के बाद मंगलवार को कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु जाग गए हैं। सनातनी घरों में आंगन में ईंखों की झोपड़ी बना कर उसमें आटे का चौक पूर कर भगवान को विराजमान कराया गया। चौक के समानांतर दो रेखाओं से इस ईंख की झोपड़ी को पूजागृह से जोड़ा गया और पांवों के निशान उस पूजाघर तक ले जाए गए। घर के सभी सदस्यों ने विधि विधान से भगवान की पूजा की और बाद में धान डाल कर सभी ने प्रदक्षिणा की। पूजा करते समय बुंदेली परंपरानुसार भगवान से प्रार्थना की, 'उठो देव, उठो देव, गुड़ माड़े खाओ, कुंवारिन के व्याऔ कराओ, व्यावन के चलाए कराओ'। घरों के दरवाजों पर दीये भी जलाए गए और बच्चों ने पटाखे भी फोड़े। शाम के समय बच्चों ने ओदबोद का प्रदर्शन कर पर्व का आनंद लिया। देवोत्थानी एकादशी में गन्ने के विशेष महत्व को देखते हुए मंगलवार को भी गन्नों की खूब बिक्री हुई और बाजार में गन्ने के दामों में आग लगी रही। गांव देहात के तमाम गन्ना किसान ट्रैक्टरों और गाड़ियों में भर कर गन्ने शहर में बेचने के लिए लाए। मंगलवार को तो गन्ना विक्रेताओं ने हदें ही पार कर दीं, उन्होंने गन्ने के मनमाने दाम वसूले।

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