भाजपा परिवार में चौराहे पर प्रतिमा रखी जाने को लेकर विवाद की स्थिति
जालौन से बृजेश उदैनियां की रिपोर्ट
जालौन। देवनगर चौराहे पर महापुरुष की प्रतिमा स्थापना का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी परिवार में विवाद का विषय बनता जा रहा है। एक और जहां कुछ जनप्रतिनिधि अपने मनमानी रवैया व हठधर्मिता के चलते अपने-अपने मन का कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता अपनी मांगों को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। परिणाम स्वरूप अब दोनों पक्ष आमने-सामने एक दूसरे के विरुद्ध अपनी अपनी बात कह कर माहौल को गर्म किए हैं।
एक दिलचस्प पहलू यह भी है की संपूर्ण उत्तर प्रदेश में विपक्ष नाम की कोई भी चीज भारतीय जनता पार्टी के संगठन के आगे बौनी होती जा रही है। हाल ही के राज्यसभा चुनाव में जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी को झटके दिए हैं और जनपद जालौन में विपक्ष के कद्दावर नेता व कालपी क्षेत्र के विधायक विनोद चतुर्वेदी ने पाला बदलकर भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य को मतदान किया है। उससे जनपद जालौन में विपक्ष की आवाज बेहद कमजोर हो गई है। इन सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी में ही गुटबाजी की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं । जैसे जैसे भाजपा में नए लोग जुड़ते जा रहे हैं वहीं भाजपा में ही एक विपक्ष तैयार होता दिखाई दे रहा है।
देव नगर चौराहे पर मूर्ति प्रकरण ने जनपद में भारतीय जनता पार्टी में अंतर विरोध को सतह पर ला दिया है। एक ओर जनप्रतिनिधि सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित करने पर अडिग हैं वहीं विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता काफी लंबे समय से देवनगर चौराहे पर स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा स्थापित करने हेतु आवाज बुलंद किए हुए हैं ।इधर नगर के कुछ समाजसेवी जालौन की पुरानी पहचान कायम रखने के उद्देश्य से जालौन की शासिका ताइबाई की प्रतिमा देवनगर चौराहे पर लगाने की मांग कर रहे हैं ।ऐसी विषम स्थितियों में भाजपा के विभिन्न वर्ग अपने ही आदर्श की मूर्तियां लगवाने हेतु आपस में ही अंतर विरोध खड़ा कर रहे हैं ।यह अंतर विरोध भले ही आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी की विजय पर प्रतिकूल प्रभाव न डालता हो ,लेकिन स्वयंसेवक आधारित और विचारधारा से प्रेरित भारतीय जनता पार्टी के आगामी भविष्य को देखते हुए यह छोटे-छोटे विवाद उचित प्रतीत नहीं होते हैं । ज्ञातव्य है कि जनपद में विभिन्न जनप्रतिनिधियों में चल रही आपस की खींचतान से कार्यकर्ता अनभिज्ञ नहीं हैं। परंतु केंद्र व प्रदेश स्तर पर इस संबंध में कोई भी पहल न होने से कार्यकर्ता मायूस होकर बड़ों के संघर्ष के आगे बेबस सा खड़ा है।
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