सत्य की रक्षा के लिए पत्नी-पुत्र सहित खुद भी बिक गए हरिश्चंद्र


रिपोर्ट- कोंच से पी.डी. रिछारिया वरिष्ठ पत्रकार

कोंच। रामलीला महोत्सव के समापन के बाद रामलीला के अभिनय विभाग द्वारा एकांकी नाटक 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' का मंचन रामलीला रंगमंच पर किया गया जिसमें रघुवंश की वचन निभाने की परंपरा और सत्य के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने का संदेश दिया गया। बताया गया कि सत्य का मान रखने के लिए किस प्रकार स्वप्न में भी किए गए दान का मान रखने के लिए राजा हरिश्चंद्र ने अपना सर्वस्व त्याग दिया और स्वामिभक्ति की ऐसी मिसाल प्रस्तुत की कि अपने मृत पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए पत्नी को भी बिना कर दिये मरघट में प्रवेश नहीं दिया।

रामलीला महोत्सव के समापन के बाद ऐतिहासिक अथवा धार्मिक नाटक खेलने की परंपरा के तहत रंगमंच पर 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' की प्रस्तुति अभिनय विभाग के रंगकर्मियों द्वारा दी गई। देवताओं का राजा इंद्र अप्सराओं के नृत्य का आनंद ले रहा है। इसी बीच उसका सिंहासन डोलने लगता है तो वह भयभीत हो उठता है और अपने पार्षदों से इसका कारण पूछता है। तभी देवर्षि नारद वहां इंद्रसभा में प्रवेश करते हैं और इंद्र को बताते हैं कि अयोध्या के प्रतापी और दानवीर नरेश हरिश्चंद्र सौवां यज्ञ कर रहे हैं और उनका यज्ञ पूर्ण होते ही वह इंद्रासन के अधिकारी हो जाएंगे। यह सुन कर इंद्र डर जाता है और महर्षि विश्वामित्र से हरिश्चंद्र का सत्य डिगाने का अनुरोध करता है। विश्वामित्र मोहिनी मंत्र का प्रयोग कर हरिश्चंद्र से स्वप्न में अयोध्या का सारा राजपाट दान में ले लेते हैं। हरिश्चंद्र विश्वामित्र की दक्षिणा चुकाने के लिए खुद को मरघट के सरदार डोम के यहां बेच देते हैं जबकि उनकी पत्नी तारामती और पुत्र रोहित राजा के यहां चाकरी करने लगते हैं। राजा की बेटी राजकुमारी बहुत ही निर्दयी और कर्कशा है, दिन रात काम लेने के बाद भी रानी तारा और रोहित को त्रास देती रहती है। एक दिन उसने रोहित को बाग से पुष्प चुनने के लिए भेजा तो वहां रोहित को बिषैले सर्प ने डंस लिया जिससे उसकी तत्काल ही मृत्यु हो जाती है। तारा उसके मृत शरीर को लेकर मरघट जाती है ताकि उसका दाह संस्कार कर सके लेकिन वहां मरघट की रक्षा कर रहे हरिश्चंद्र अपनी पत्नी को बिना मरघट का कर चुकाए रोहित का क्रियाकर्म करने देने से मना कर देते हैं। जैसे ही हरिश्चंद्र रोहित को मुखाग्नि देने के लिये उद्घत होते हैं, विश्वामित्र वहां प्रकट होकर उनका हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि वह उनकी परीक्षा में सफल हुए। ऐसा कह कर वह रोहित को पुन: जीवित कर उनका सारा राजपाट लौटा कर उन्हें पुन: अयोध्या नरेश बना देते हैं। हरिश्चंद्र का किरदार प्रमोद स्वर्णकार, तारामती कैलाश नगाइच, विश्वामित्र अरुण वाजपेयी, नारद देवेश सोनी, इंद्र जवाहर अग्रवाल, डोम सूर्यदीप सोनी, महर्षि बशिष्ठ सोनू नगाइच, राजकुमारी महावीर लाक्षकार, नक्षत्रा गिरधर सकेरे, रोहित अर्पण सोनी, मंत्री अमन सक्सेना, अप्सरा प्रशांत चौहान, राहुल बाबू आदि ने निभाए।

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