अहंकार यानी पतन
अहंकार एक भ्रांति है जो आत्मप्रदर्शन के लिऐ पग–पग पर पाखंड रचने के लिए प्रेरित करती है। हमारे सगे संबंधियों से,अच्छे भले साथियों से अंहकार के कारण आत्मीयता का भाव समाप्त हो जाता है बस केवल दिखाने भर के लिऐ चेहरा मुस्कुराहट भरा बना रहता है। आत्मीयता समाप्त होते ही आपस में सहकारिता, संगठन,एकता खत्म होकर हम यंत्र जनित मानव रह जाते हैं, हमारी मनुष्यता का लोप हो जाता है, दूसरी ओर कुछ लोगों में सज्जनता सहज ही साथ रहती है। सज्जन का पहला लक्षण है नम्रता–शिष्टता, दूसरा गुण है हर किसी को यथोचित सम्मान प्रदान करना और जिनमें ये एक भी गुण न हो उसकी गणना दुर्जनो में होती है। इस तथ्य से जो अवगत है उसी को यथार्थवादी या बुद्धिमान कहा है इसलिए सज्जन व्यक्ति इन विशेषताओं को समुचित मात्रा में अपनाए रखकर अपना दृष्टिकोण और स्वभाव उसी में ढाल लेते हैं उन्हें अंहकार आत्मघाती जैसा प्रतीत होता है और वे उससे बचे रहने का सतर्कता पूर्वक प्रयत्न करते रहते हैं। आत्मनिरीक्षण करते हुए पैनी दृष्टि से यह जांचते रहते हैं कि कहीं अंहकार ने व्यक्तित्व के किसी पक्ष में डेरा डालना तो आरंभ नहीं कर दिया,यदि किसी मात्रा में ऐसा हो रहा होता है तो वह उसे हटाने के लिए पूरी शक्ति से उसमे प्रयत्न करते हैं।
अंहकारयुक्त व्यक्ति हमेशा यह दर्शाने का प्रयास करता है कि वह सामान्य नहीं बल्कि असामान्य स्तर का व्यक्ति है। उसे अपनी कृतियों का बढ़ा–चढ़ाकर ढिंढोरा पीटने–पिटवाने में आत्मसुख की प्राप्ति होती है।
वास्तव में अंहकार का जाल–जंजाल ऐसा है जिसमे फंस जाने वाला अपनी वास्तविक शक्तियों का इस प्रकार प्रयोग करता है कि निरंतर उसका ही नुकसान बढ़ता जाता है।जो कुछ पास में था उसका सदुपयोग करके कुछ बना और बढ़ा जा सकता था वह आत्मप्रदर्शन के कुचक्र में ही बर्बाद हो जाता है।
जिस प्रकार दर्पण में देखकर चेहरे की गंदगी साफ कर ली जाती है उसी प्रकार आत्मनिरीक्षण द्वारा आपने चिंतन और व्यवहार का निरीक्षण–परीक्षण करके यह देखना चहिए कि नम्रता, शिष्टता और सज्जनता का स्तर घटने तो नहीं लगा, प्रदर्शन की ललक मेंअंतर्मन नाटकीय अंहकार का अड्डा तो नहीं बन गया, यदि ऐसा हो तो उचित यही है कि समय रहते आत्मशोधन कर लिया जाए। अंहकार की वृद्धि के साथ मनुष्य का पतन भी प्रारंभ हो जाता है और अंहकार की पराकाष्ठा उसका सब कुछ नष्ट करके ही छोड़ती है।
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