कोतवाली कांड की उन्नीसवीं बरसी आज
कोंच से पी. डी. रिछारिया
वरिष्ठ पत्रकार
कोतवाल डीडीएस राठौर ने आज ही के दिन तीन को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतारा था
* पुलिस की हैवानियत का जीता जागता उदाहरण है कोतवाली कांड
कोंच। हमारा देश भले ही सात दशक पूर्व बरतानवी हुकूमत की दासता से आजाद हो गया हो लेकिन पुलिस की कार्यशैली में आज भी बरतानवी हुकूमत की बर्बरता साफ दिखाई देती है। कोंच का बहुचर्चित कोतवाली कांड इसका जीता जागता उदाहरण है जब 1 फरवरी 2004 को तत्कालीन कोतवाल डीडीएस राठौर ने तीन निर्दोषों को केवल इसलिए मौत के घाट उतार दिया था कि उन्होंने कोतवाल की निरंकुशता और मनमानी और निर्दोषों को रात भर लॉकअप में बंद रखने पर सवाल खड़े किए थे। उक्त कांड के दोषियों को हालांकि अदालत ने सजा दे दी है जिससे घटना में मारे गए लोगों के परिजनों में थोड़ा संतोष जरूर है लेकिन जो लोग गए हैं उनकी कमी तो उन्हें जीवन भर सालती ही रहेगी।
उन्नीस साल का लंबा अंतराल गुजर जाने के बाद भी यहां के लोगों के जेहन में 1 फरवरी 2004 की वह घटना आज भी ताजा है जब रोडवेज कर्मचारी संघ के मंडलीय पदाधिकारी महेंद्रसिंह निरंजन, सपा के वरिष्ठ नेता मथुरा प्रसाद महाविद्यालय प्रबंध समिति के तत्कालीन मंत्री सुरेंद्रसिंह निरंजन और उनके मित्र दयाशंकर झा को कोतवाली के अंदर तत्कालीन कोतवाल देवदत्त सिंह राठौर ने गोलियों से छलनी करके बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था। दरअसल, 31 जनवरी 2004 की रात तत्कालीन कोतवाल डीडीएस राठौर ने सुरेंद्रसिंह निरंजन के दामाद शिवकुमार निरंजन को अकारण ही रात भर कोतवाली के लॉकअप में बंद रखा था और 1 फरवरी को जब कोतवाल से इसका हिसाब मांगा गया तो उन्हें इसमें अपनी तौहीन लगी और उसने इतने बड़े कांड को अंजाम दे डाला जिसकी गूंज पूरे देश में सुनी गई थी।
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