मूर्तियों और पात्रों के श्रृंगार में ब्रश के बजाए सरई की सींक का प्रयोग होता है
कोंच से पी. डी. रिछारिया वरिष्ठ पत्रकार
कोंच। अनुष्ठानों और परंपराओं को लेकर जानी जाने वाली कोंच की विश्व विख्यात रामलीला में अभी भी एक सौ सत्तर साल पुरानी परंपराओं का बखूबी निर्वहन किया जा रहा है। मूर्तियों (राम, भरत, लक्ष्मण और रिपुदमन के सजीव श्रीविग्रह) के ही नहीं बल्कि पात्रों के श्रृंगार में भी ब्रश का प्रयोग सख्ती के साथ वर्जित है। ब्रश के बजाए चेहरे पर रंग भरने में सरई की सींक का प्रयोग किया जाता है। माना जाता है कि ब्रश का निर्माण जानवरों के बालों से किया जाता है, इस लिहाज से ब्रश अपवित्र होता है। देखने सुनने में यह काम जितना आसान लगता है उतना है नहीं। सींक से श्रृंगार करने के लिए अभ्यास की जरूरत होती है। पुरानी पीढ़ी के लोग इस कला को आने वाली पीढ़ी में हस्तांतरित करते जाते हैं। मूर्तियों के श्रृंगार में ज्यादातर स्वर्णकार और पाटकार विरादरी तथा पात्र श्रृंगार विभाग में लगभग हर विरादरी के लोग राम सेवाभाव से नि:स्वार्थ और नि:शुल्क सेवाएं देते आ रहे हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें