प्रभु करि कृपा पांवरी दीन्ही, सादर भरत सीस धरि लीन्ही'
कोंच से पी. डी. रिछारिया वरिष्ठ पत्रकार
* भरत मनौआ लीला में चित्रकूट जाते भरत वृक्षों और लताओं से रघुराई का पता पूछ रहे हैं
कोंच। रामलीला के जारी 170वें महोत्सव में गुरुवार की रात भरत मनौआ लीला का बड़ा ही मार्मिक मंचन किया गया जिसमें भरत अयोध्या का राज सिंहासन अस्वीकार कर देते हैं और राम को अयोध्या लौटने के लिए मनाने चित्रकूट जाते हैं। वन में वह वृक्षों और लताओं से रघुराई का पता पूछ रहे हैं।
राम के वनवास और दशरथ के प्राण त्यागने का कारक कैकेई को मानकर भरत अपनी माता को तमाम खरी खोटी सुनाते हुए अयोध्या के सिंहासन पर बैठने से मना कर देते हैं और मंत्रिमंडल तथा प्रजा जनों को लेकर वह राम को अयोध्या लौटने के लिए मनाने वन जाते हैं। राम भरत की विनय पर अयोध्या का राज तो स्वीकार कर लेते हैं लेकिन पिता की आज्ञानुसार चौदह वर्ष पूर्ण होने से पहले अयोध्या लौटने से मना कर देते हैं और तब तक राजपाट संभालने की जिम्मेदारी भरत को निभाने का आदेश देकर अपनी पादुका राजचिन्ह के रूप में भरत को प्रदान करते हैं। गुरुवार की रात रामलीला रंगमंच पर मंचित भरत मनौआ लीला में उक्त प्रसंग दर्शाए गए। चित्रकूट जाते समय भरत भ्रातृप्रेम में इतने विह्वल हो जाते हैं कि वे वृक्षों और लताओं से रघुवर का पता पूछते हुए गाते हैं, 'बोलो हवाओ, बोलो दिशाओ, कहां गए मेरे राम प्यारे।' सेना सहित वन में भरत को देखकर निषाद राज गुह को भ्रम हो जाता है कि वह अपना राज निष्कंटक करने के लिए राम पर आक्रमण करने जा रहे हैं सो वह अपने सैनिकों को भरत से युद्ध करने के लिए सन्नद्ध रहने के लिए आदेशित करता है। अंत में राम और भरत मिलन का मार्मिक दृश्य देख दर्शक भी भावुक हो उठते हैं। बशिष्ठ की भूमिका संतोष त्रिपाठी, निषाद राज गुह ध्रुव सोनी, कौशल्या सूरज शर्मा, कैकेई अतुल चतुर्वेदी, सुमित्रा आकाश शांडिल्य, बूढ़ा निषाद छोटे स्वर्णकार, इंद्र जवाहर अग्रवाल आदि ने निभाई।
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