महामारी क्या एवं निष्प्रभावी कैसे हो ?




हृषीकेश त्रिपाठी

शिक्षक एवं ज्योतिर्विद्

सांसारिक सुखों की प्राप्ति हेतु मनुष्य असंयमित एवं अनैतिक मार्ग का अनुसरण करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रहा है जिसके फलस्वरूप सात्विक वृत्तियों का अभाव हो रहा है तथा अधर्म एवं आसुरी वृत्तियों की वृद्धि होती जा रही है।

सनातन धर्म के प्रसिद्ध एवं प्रामाणिक ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस में स्पष्ट है कि जब माता पार्वती ने श्रीशिव जी से प्रभु श्रीराम के मनुष्य रूप में अवतरण होने का हेतु पूंछा तो श्रीशिव जी ने कहा -

जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं  असुर अधम अभिमानी।।

अर्थात् जब-जब नीच, अभिमानी एवं राक्षसों द्वारा धर्म का ह्रास होता है और ब्राम्हण, गौ, देवता एवं पृथ्वी कष्ट पाते हैं;

तब तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।

अर्थात् तब-तब प्रभु भिन्न-भिन्न शरीर धारण करते हुए सज्जनों की पीड़ा का हरण करते हैं और असुरों का अंत करते हुए धर्म की स्थापना करते हैं।

इसी प्रकार, श्रीदुर्गासप्तशती में प्राधानिक रहस्य में स्पष्ट है कि जब आद्याशक्ति महालक्ष्मी से भगवती महाकाली ने अपने नाम एवं कर्म के बारे में पूंंछा तो महालक्ष्मी ने महाकाली को महामाया, महाकाली, महामारी, क्षुधा, तृषा, निद्रा, तृष्णा, एकवीरा, कालरात्रि एवं दुरत्यया नाम दिये। महामारी का कर्म व्यापक रूप से प्रलयंकारी सामूहिक दण्ड देते हुए आसुरी वृत्तियों का शमन करना है।

आयुर्वेद शास्त्र के आचार्य सुश्रुत ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुतसंहिता में स्पष्ट किया है कि महामारी अधर्मजन्य है। आचार्य के अनुसार; संक्रमित व्यक्ति के साथ उठने बैठने, गले मिलने, एक साथ भोजन करने, एक आसन पर बैठने, एक साथ सोने अथवा संक्रमित व्यक्ति द्वारा स्पर्श की गई वस्तु या पदार्थ के संपर्क में आने से संक्रमण फैलता है। ये सभी तथ्य कोविड-19 में व्यवहारिक रूप से दिखाई दिये। इसी प्रकार कृषि में विभिन्न रासायनिकों द्वारा उत्पादन एवं गोवंश के विनाश से मनुष्य निरन्तर उपयुक्त आहार विहार से वंचित होता जा रहा है। इसी क्रम में इन्द्रियों पर नियन्त्रण के अभाव में रोग निरोधक शक्ति का ह्रास करने वाले विभिन्न खाद्य पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन कर रहा है।

महामारी की शान्ति हेतु, प्रथम पूज्य श्रीगणेश जी के मन्त्र की एक माला के जप से प्रारम्भ करते हुए शिखा-सूत्र धारी साधक को महामारी के मूलमन्त्र ॐ ह्रीं महामार्यै नमः का अधिकार प्राप्त है, जबकि शिखा-सूत्र रहित श्रद्धालु को श्री महामार्यै नमः का जप करना चाहिये। स्मरण रहे कि शिखा-सूत्र धारी एवं शिखा-सूत्र रहित श्रद्धालु साधक के अधिकार भिन्न भिन्न हैं। इसी क्रम में महर्षि वेदव्यास एवं भगवान् धनवन्तरि के मतानुसार, ॐ अच्युताय नमः। ॐ गोविन्दाय नमः। ॐ अनन्ताय नमः। मन्त्र के श्रद्धापूर्वक जप से रोगी असाध्य रोग से भी मुक्त हो जाता है। ये तथ्य गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित मासिक पत्रिका कल्याण वर्ष 2021 के सितंबर माह के अंक में पं० श्रीगंगाधर पाठक जी के लेख (पृ०सं० २०) से लिये गये हैं।

वेद, पुराण एवं ज्योतिष आदि शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है कि महामारी की शान्ति का एकमात्र साधन भगवत्शरणागत होना ही है। यथाविधि यज्ञ, अनुष्ठान, हवन, भगवन्नामसंकीर्तन तथा कथाश्रवण आदि द्वारा महामारी की शान्ति सहज एवं सरल है। सनातन धर्म पूर्ण रूप से आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक हैं जिसमें ऋषियों (वैज्ञानिकों) ने शास्त्रों में प्राकृतिक अथवा प्राकृतिक आपदाओं का निवारण समावेशित किया है। आवश्यकता है - मात्र खोजने की।  



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