काम का मर्दन करने की लीला है महारास-आचार्य सागरकृष्ण

 

कोंच से पी. डी. रिछारिया वरिष्ठ पत्रकार
कोंच। वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारा गोपांगनाओं के साथ रचाया गया महारास वस्तुत: काम मर्दन की लीला ही है। यह बात यहां अखिल भारतीय सनातन धर्म रक्षिणी सेवा समिति के तत्वाधान में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में जारी भागवत कथा के षष्ठम दिवस की कथा सुनाते हुए आचार्य सागरकृष्ण शास्त्री ने कही। 
कथा व्यास ने बताया कि काम का मर्दन करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने महारास की लीला संपन्न की। जब काम तीनों लोकों में अपनी विजय पताका फहराते हुए वृंदावन आया और भगवान श्रीकृष्ण से बोला कि उसका तिलक कर विजयश्री की घोषणा करें। तब गोविंद ने कहा हमारे बीच में कोई युद्ध हुआ नहीं तब तुम्हारी विजय कैसे हो गई। तब कन्हैया के कहने पर कामदेव शरद पूर्णिमा की रात्रि में यमुना के पावन तट वृंदावन के निधिवन में आ गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाकर बृज की सभी गोपियों को निधिवन में बुला लिया। ललिता, विशाखा, श्यामा, राधा आदि सभी गोपियां कन्हैया की वंशी की धुन को सुनकर अपने कार्यों को त्यागकर कन्हैया के पास दौड़ी चली आती हैं। भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोपियां नृत्य करने लगती हैं तभी कन्हैया गोपियों के मध्य से अंतध्र्यान हो जाते हैं। राधा और अन्य गोपियों ने गोपी गीत के माध्यम से भगवान को पुकारा गोपियों की करुण पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो जाते हैं और सभी गोपियों के साथ वहां महारास की लीला संपन्न करते हैं। कामदेव भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता है और क्षमा याचना मांगता है। कन्हैया के कहने के अनुसार कामदेव भगवान श्रीकृष्ण के बेटे प्रद्युम्न बनकर आते हैं। महारास की पावन लीला में भगवान शंकर भी गोपी का वेश बनाकर आते हैं। इस प्रकार भोलेे भंडारी भगवान शिव गोपेश्वर महादेव कहलाने लगे।

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