सुदामा चरित्र की कथा सुन श्रोता हुए भाव विभोर
सियाराम शिवहरे संयज गुप्ता नीलकमल भोला पाठक की रिपोर्ट
*भगवान धन दौलत के नही भाव के भूखे हैं। सुदामा ने भाव से ही भगवान को पा लिया-पं० निष्कम्प चेतना
ईंटो। जालौन 27 फरवरी। ब्लाक कुठौन्द के न्याय पंचायत ईंटों क्षेत्र के ग्राम पृथ्वीपुरा में पीपल वाली रामेश्वरी माता के मन्दिर पर तिवारी परिवार के सानिध्य में चल रही। श्रीमद् सप्ताहिक भागवत कथा के सातवें बिराम दिवस के दिन कथा ब्यास पं० बालयोगी सुश्री निष्कम्प चेतना गिरिजी महाराज अमृतसर ने सुदामा चरित्र की कथा को कहते हुए कहा है कि भगवान धन दौलत के नही भाव के भूखे है।
सुदामा अपने बचपन के मित्र बाल सखा द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण से मिलने के लिए। भगवान के पास द्वारिका पुरी पहूंच गये। सुदामा बहुत गरीब ब्राह्मण थे। सुदामा कृष्ण की मित्रता सन्दीपन गुरु के यहां शिक्षा गृहण करने गये थे।तब हुई थी। जिसमें अमीरी गरीबी और ऊंच नीच का भेदभाव नही था। भगवान कृष्ण और सुदामा की सच्ची मित्रता थी। सुदामा जब अपने बाल सखा भगवान द्वारिकाधीश से मिलने के लिए जा रहे थे।तब उन्होंने सोचा कि वर्षों के बाद अपने मित्र से मिलने जा रहे है। खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

लेकिन सुदामा बहुत गरीब ब्राह्मण थे। लेकिन इतने गरीब थे कि अपने परिवार का और अपना पेट भरना मुश्किल हो रहा था। सुदामा ने अपनी पत्नी से कहा कि अपने मित्र से मिलने जा रहा हूं। कुछ हो तो दो खाली हाथ जाना सही नही है। सुदामा की पत्नी ने कहा घर में तो कुछ भी नही है। पड़ोसी के यहां देखती हूं।शायद कुछ मिल जाऐ। सुदामा की पत्नी अपने पड़ोसी के यहां गई। और चावल मांगें तो पड़ोसी ने चावल देने से मना कर दिया। और चावलों की भूसी दे देदी। सुदामा चावलों की भूसी गठरी में बांधकर अपने मित्र द्वारिकाधीश से मिलने।द्वारिकापुरी की ओर चल दिये।द्वारिका में भगवान कृष्ण ने जब सुना कि हमारे बाल सखा सुदामा आऐ है।तो भगवान द्वारिकाधीश नंगे पैर दौड़ पड़े। अपने मित्र सुदामा को सीने लगाकर रोने लगे। भगवान द्वारीकाधीश के आंखों से अश्कों की धारा बहने लगी। भगवान कृष्ण सुदामा को अपने साथ महल में ले गये। और सुदामा के पैरों धुलकर।हाल चाल पूछने लगे। अपने मित्र सुदामा से पूछने लगे।मित्र भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा है।तो सुदामा कुछ नही वोले और चावलों के भूसी की पुटरिया छिपाने लगे। भगवान तो घट घट वासी है। भगवान से कोई भी कुछ नही छिपा सकता है। भगवान समझ गये कि सुदामा कुछ छिपा रहे है। भगवान ने सुदामा से चावलों के भूसी की पुटरिया खींच ली। और भर भर मुट्ठी चावलों की भूसी खाने लगे।दो मुट्ठी भूसी खा ली। और सुदामा को दो लोक दे दिए।तीसरी मुट्ठी खाने वाले थे कि रूक्मणी ने हाथ पकड़ लिया। कहा प्रभू सभी कुछ दे दोगे। एक लोक अपने लिए भी रख लो। भगवान भक्त को अपना सभी कुछ दे देते है। भगवान की ओर एक कदम बढ़ाकर कर तो देखो। भगवान आपके ह््रदय में निवास बना लेंगे। भगवान सदा आपके करीब रहेंगे। संसार में कभी किसी से मित्रता करो।तो भगवान कृष्ण और सुदामा की जैसी करो। मित्रता में स्वार्थ नही होना चाहिए । निस्वार्थ भाव से होना चाहिए। सुदामा के पास कुछ नही था। सिर्फ भगवान के प्रति भाव था।भाव से ही भगवान को प्राप्त कर लिया। कथा समापन दिवस पर ग्रेट इंडिया महासभा राष्ट्रीय अध्यक्ष लवकुश लम्बरदार ने सभी का आभार व्यक्त किया! सभी ने गुरु जी से आशीर्वाद लिया! इस मौके पर दीपक अग्निहोत्री प्रदेश अध्यक्ष उपजा नीलेन्द्र दुबे,समीर मिश्रा,गौतम त्रिपाठी,आन्नद गुप्ता, गोपाल दुबे,दम्मू दीक्षित,संजय शिवहरे, नीलकमल, सियाराम शिवहरे, भोला पाठक,कथा पारीक्षित राजेन्द्र प्रसाद तिवारी व इनकी पत्नी नारायणदेवी, सियाराम गोस्वामी, सहायक आचार्य पं० श्रीरमण शास्त्री दीपक कृष्ण शास्त्री, किशनजी शास्त्री, दुर्गेश महाराज, कन्हैया मिश्रा, राघवेन्द्र दीक्षित, जितेन्द्र शुक्ला, राधा शुक्ला, आदित्य शुक्ला, रोहन तिवारी, राखी तिवारी, दीक्षा तिवारी, भरत तिवारी, मुन्नी तिवारी, रिंकी तिवारी, रमा तिवारी, पूजा तिवारी, भारती तिवारी, लवकुश त्रिपाठी,दीपू लम्बरदार, अनुराग तिवारी, हरिओम त्रिपाठी, श्रीकान्त तिवारी, दिलीप दीक्षित,प्रदीप दुबे, रामजी गुप्ता,जीसाहब तिवारी, श्रीप्रकाश दीक्षित, सुरेन्द्र दीक्षित, सुबोध तिवारी, प्रदीप दुबे जितेन्द्र,विनोद, योगेश त्रिपाठी , सजल बिपिन, प्रमोद शिवहरे, साधु गुप्ता, लकी शर्मा, अशोक रामू चन्द्रेश,मुणेश, अनिरुद्ध आदि सहित सैंकड़ों श्रोता भक्तगण मौजूद रहे।
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