समय, समाज और संस्कृति की गुत्थियों को सुलझाने में मदद करता है साहित्य-डॉ. अनिल

फोटो-बेबिनार गोष्ठी में बोलते अतिथि


कोंच से पी. डी. रिछारिया वरिष्ठ पत्रकार  


* ‘मुंशी प्रेमचंद और आज का समाज’ विषयक बेबिनार गोष्ठी का आयोजन किया इप्टा व प्रलेस ने


कोंच। प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) झांसी के अध्यक्ष और हिंदी साहित्य के युवा समालोचक डॉ. अनिल अविश्रांत ने कहा है कि साहित्य का काम अपने समय, समाज और संस्कृति की गुत्थियों को सुलझाने में मदद करना है, इसलिए प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकारों ने इस पर अमल किया जिसका नतीजा रहा कि साहित्य, संस्कृति की धारा को हम जनता के हिसाब से सही दिशा देने में कुछ हद तक कामयाब हो सके, निश्चित रूप से यह एक बड़ा काम था। प्रगतिशीलता ही साहित्य की मुख्य धारा मानी जाती है। साहित्य, संस्कृति और समाज विज्ञान के दूसरे अनुशासनों ने इस दिशा में मिल-जुल कर काम किया है। इस प्रकार समाज को बदलने में प्रगतिशील आंदोलन की भूमिका को रेखांकित किया जा सकता है। यह बात उन्होंने इप्टा और प्रलेस के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित बेबिनार गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता कही।


कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 140वीं जयंती के अवसर पर भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) कोंच एवं प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) कोंच इकाईयों द्वारा ‘मुंशी प्रेमचंद और आज का समाज’ विषयक बेबिनार गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि इप्टा और प्रलेस के प्रांतीय सचिव डॉ. मोहम्मद नईम ने कहा कि कथा सम्राट के निधन के 85 सालों बाद भी होरी, धनिया, घीसू और माधव जैसे तमाम किरदार आज भी हमारे आसपास निरीह और असहाय अवस्था में घूम रहे हैं और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। महाजनी सभ्यता नए रुपों में हमारे सामने है। हामिद के हाथ में चिमटा नहीं, मोबाइल है, जिससे वह पबजी खेल रहा है। मानवीय संवेदनायें हमारे रिश्तों और हमारे समाज से गायब हो रही हैं। संस्कृति और सभ्यता के नाम पर गुमराह करने बाले तत्व आज हावी हैं, जिन्हें नाकाम करना है। भूमंडलीकरण और कारपोरेट के शोर-शराबे पर चल रही हमारी बहसों से साहित्य को बहुत लाभ नहीं मिलने वाला। हमें अपनी देसी संस्कृति और लोकान्मुखी चेतना के विकास में अपना ध्यान लगाना होगा। यह सब हमारे लेखन में दिखना चाहिए, तभी हम मुंशी प्रेमचंद की विरासत को आगे ले जाने में समर्थ होंगे।


गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए इप्टा कोंच के संरक्षक अधिवक्ता अनिलकुमार वैद ने कहा, प्रगतिशील आंदोलन का प्रारंभ ही साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के विरोध में हुआ था, प्रेमचंद के कथा साहित्य में जब हम विचरण करते हैं, तो इन सबके विरोध में हम उनके विचारों को पाते हैं। गोष्ठी का प्रारंभ इप्टा रंगकर्मियों साहना खान, रानी कुशवाहा, कोमल अहिरवार, आदर्श अहिरवार द्वारा प्रस्तुत जनगीतों से हुआ। संचालन प्रलेस कोंच के महासचिव पारसमणि अग्रवाल ने किया एवं आभार इप्टा कोंच के सहसचिव ट्रिंकल राठौर ने जताया। राशिद अली, भास्कर गुप्ता, अमन खान, दानिश मंसूरी, प्रिया अग्रवाल, अमन अग्रवाल, भानुप्रताप, विशाल याज्ञिक, सैंकी यादव, योगवेन्द्र कुशवाहा आदि बेब माध्यम से उपस्थित रहे।


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