लोग नहीं चाहते कि चौकी इंचार्ज का स्थानान्तरण कहीं और हो


वरिष्ठ पत्रकार अलीम सिद्दीकी
*प्रार्थना पत्र मिलते ही अपराधी को झपटकर पकडना और पीड़ित को न्याय दिलाना पहली प्राथमिकता है चौकी इन्चार्ज योगेश पाठक की
उरई। पुलिस का नाम सुनते ही आम जनता के दिल में एक भाव पैदा होता है। बेलगाम जुबान, कठोर स्वभाव और सामने वाले को लज्जित करने वाले शब्द, जैसे तमाम भाव आम लोगों के दिल और दिमाग में कौंधते रहते हैं। ऐसा नहीं है की विभाग के नीतिकारों ने आम जनता की इस भावना को दूर करने के लिए प्रयास नहीं किये। लेकिन भरपूर प्रयास करने के  बावजूद महकमे के लोगों में कोई बदलाव नहीं आया और न ही जनता की धारणा में। कोतवाली थाने, चौकी जैसे जिम्मेदारी वाले पद अनुभवी और तेजतर्रार अधिकारी को सौंपने की पुलिस की पुरानी परम्परा है। लेकिन इस परम्परा का निर्वाह करते समय जिम्मेदार कुछ अपने निजी स्वार्थ में तो कोई फील गुड के चलते अपनी छवि पर दाग लगा लेते हैं तो कुछ राजनैतिक लोगों के मकड़ जाल में फंसकर कैरियर खराब कर बैठते हैं। इससे वर्दी का रसूख और जिम्मेदार का रुतवा दोनों चला जाता है। सरकार भले ही कुछ कहती रहे लेकिन जिलों में खादीधारी पुलिस के काम में दखल देने से बाज नहीं आते। यहाँ अपराधी पकड़ा नहीं वहाँ उसे छोड़ देने की सलाह सी यू जी नम्बर पर आने लगती है। सरकार की मंशा साफ है जिसके तहत हर हालत में अपराध पर लगाम लगनी चाहिए। लेकिन सरकार किसी की भी हो उसके कारिंदे जिले स्तर पर जो करते हैं वो किसी से छुपा नहीं है ऐसे में वर्दी का रसूख, जिम्मेदारों का रौब कैसे कायम रखा जा सकता है ? अपराधियो को जेल और गरीब, बेसहारा यचनाकर्ता को न्याय दिलाने की निष्पक्ष क्षमता जिसके अंदर होती है इतिहास में नाम तो उन्हीं का सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। 
ऐसे में कम फोर्स बड़ा हल्का होने के बाद चौकी को रौब, रसूख, प्रेम, से कैसे चलाया जाता है ये बल्लभ नगर चौकी इंचार्ज से सीखना चाहिए। योगेश पाठक पेशे से एस.आई.है। पढ़ाई के दौरान ऊंचा पद पाने की इक्षा में अटूट मेहनत की लेकिन दुर्भाग्य से कामयाब नहीं हुए। उसके बाद उन्होंने  एक एस आई के पद से पुलिस विभाग में सेवा देनी शुरू की। जिले की एक मात्र अल्पसंख्यक बस्ती की चौकी के इंचार्ज  बनने के बाद इन्होंने पिछले लगभग तीन वर्षों से जिस तरह से अपने काम को अंजाम दिया है उससे विभाग के उच्चाधिकारी तो गद-गद हैं ही साथ में हल्के के आम और सुकून पसन्द नागरिक भी उनकी कार्य शैली से प्रभावित हैं। यही कारण है की उनके अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र चौकी इंचार्ज बनते ही। तीन तलाक, मंदिर फैसला और एन.आर.सी. जैसे विश्वव्यापी मुद्दे सामने आये। इन मुद्दों को हवा देने वाले लोगों पर पैनी नजर बनाये रखना और अपने व्यक्तिगत सूचना तन्त्रों से सूचना पाकर सामंजस्य बनाकर शहर में कोई अप्रिय घटना न होने का श्रेय इन्हीं को जाता है। इतना ही नहीं जब देश में जगह-जगह कोरोना संक्रमित क्षेत्र में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के ऊपर हमले हो रहे थे उस समय जिले में जितने कोरोना संक्रमित निकले उसमे से कुल संक्रमित लोगो में से आधे से अधिक संक्रमित बल्लभ नगर चौकी में निकले। इतनी तादाद में मरीजों का निकलना और उनको स्वास्थ्य सेवाओं की निगरानी में लाना प्रशासन के लिए एक बड़ा काम था। इस काम के लिए लावलश्कर जाना चाहिए थे वहां चौकी इंचार्ज ने अपने दो हमराहियों के साथ एक एक संक्रमित व्यक्ति को मेडिकल पहुंचाने में जिस तरह से भूमिका निभाई उससे विभाग में उनकी प्रशंसा हुई।
पिछले तीन वर्षों में बल्लभ नगर चौकी के अधीन होने वाले अपराध में जबरदस्त गिरावट देखी गई है इसका कारण है की प्रार्थना पत्र मिलते ही अपराधी को झपटकर पकडना और प्रार्थी को न्याय दिलाना इनकी प्राथमिकता में से एक है।
हल्के से आने वाले प्रार्थना पत्रों में 80 प्रतिशत सुलह कराकर निपटाने की अद्भुत क्षमता रखने वाले योगेश पाठक का सूचना तंत्र इतना मजबूत है कि पिता भी अपने अपराधी बेटे की सूचना देने से पीछे नही हटता। यही कारण है की पिछले तीन वर्ष में चौकी क्षेत्र में मात्र एक हत्या का मामला सामने आया है। मामला दो सम्प्रदाय से जुड़ा होने के कारण मामला पेचीदा था। वक्त की नजाकत और मामले की गम्भीरता को देखते हुए अपराधी पर गिद्ध की दृष्टि रखते हुए उसको किस तरह से पुलिस के आगे घुटने टेकने को मजबूर किया ये सब ने देखा। इतना ही नहीं अपराधी ने उच्चाधिकारी के सामने आत्मसमर्पण किया । उसके पीछे भी चौकी इन्चार्ज पाठक का खौफ था।
कम अपराध और याचनाकर्ता को समय से न्याय मिलने से सुकून पसन्द लोग नहीं चाहते कि पाठक का स्थानांतरण कही और न हो। लेकिन स्थानांतरण एक सरकारी सत्य है जो हर सरकारी कारिंदे को स्वीकारना पड़ता है।


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